Zoho के सह‑संस्थापक और CEO सृधर वेम्बु ने कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सिर्फ नौकरियां छीनने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि मिडल‑क्लास की आर्थिक स्थिति को भी धराशायी कर सकता है ।
क्या कहा वेम्बु ने:
-
“हम सम्पूर्ण स्वचालन (full automation) के बहुत दूर हैं”, और अगर कोडिंग भी AI संभाल ले, तब भी मानव जीवन के लिए विकल्प मौजूद रहेंगे
-
लेकिन मुख्य समस्या ये है कि अगर उत्पादन AI और रोबोट से होगा, तो “खुश‑नमी सर्वत्र सस्ते माल”, पर जिसके पास पैसा नहीं, वो कैसे खरीदेगा?” ।
समाधान‑मंज़िल पर नजर:
-
मानव‑केवल कार्यों का महत्व: बच्चों की देखभाल, खेती‑बाड़ी, संगीत, स्वास्थ्य देखभाल, मिट्टी और पर्यावरण संरक्षण जैसे काम अधिक भुगतान लाएंगे ।
-
सरकारों की भूमिका: वेम्बु ने कहा कि यह कोई तकनीकी मसला नहीं बल्कि “राजनीतिक‑आर्थिक” मसला है। नीतियों द्वारा यह सुनिश्चित करना होगा कि AI से जो दौलत बनी है, वह केवल कुछ कंपनियों तक सीमित न रहे
कहाँ फंसी राजनीति:
-
मोनोपॉली नियंत्रण ज़रूरी है, ताकि टेक्नोलॉजी कंपनियां खुद‑अपने मुनाफ़ों में इज़ाफ़ा न करें और आम नागरिकों की क्रय शक्ति बनी रहे ।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर भारत और वैश्विक आर्थिक नीतियों की बहस में यह विचारधारा एक नया आयाम जोड़ती है। इसे तकनीकी नहीं, बल्कि राजनैतिक‑आर्थिक संकट के रूप में देखा जाना चाहिए।